नाम बस लब पे हमारा आये
जिस तरफ भी ये इशारा जाए ।।
आह सुनके भी छटपटाते थे
आज फिर उनको पुकारा जाये ।।
रोज पैदा हुआ वहम जिनसे
उन खताओं को सुधारा जाए ।।
बुझ गए गम के शरारों से जो
उन चरागों को जलाया जाए ।।
आज तन्हाइयों की ख्वाहिश है
उनसे भी आज मिलाया जाए ।।
रोज जिस दर पे सर झुकाता हूँ
आज उनको भी बुलाया जाए ।।
नाम बस लब पे हमारा आये
जिस तरफ भी ये इशारा जाए ।।
मनोज नौटियाल
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