आज अपनी लेखनी के, खोल कर विस्तार सारे
आ गया लो मैं तुम्हारे , प्रेम का श्रृंगार लिखने ।।
भाव की भागीरथी के , मैं किनारे देखता हूँ
आज तर्पण पा गए हैं , वेदना के छंद सारे
बाँध रखी थी गिरह जो , वीतरागी चेतना ने
मुक्त होने लग गए हैं , प्रेम के अनुबंध सारे ।।
योग्यता के मान सारे ,आ गया हूँ साथ लेकर
ज्ञान देती प्रेरणाओं का नया आधार लिखने ।।
त्याग से भरती नहीं है ,कामनाओं की सुराही
वासना के नीर से ही ,आचमन करना पड़ेगा
इस विरह के पात्र में ,संचित रखी आहूतियों से
वेदनाओं को जला करके, हवन करना पडेगा ।।
उस हवन की राख से मैं ,आज तन मन में तुम्हारे
आ गया हूँ मौन होकर, मौन का स्वीकार लिखने ।।
गौर से देखो ज़रा इन ,डगमगाती वीथियों को
दे रही हैं ये युगों से , साथ चलने की गवाही
हमसफ़र बन के निभाए , थे कई वादे इरादे
मंजिलों पर ख्वाहिशों ने ,दी हमें लाखों बधाई ।।
वो समय फिर लौट आया है ,चलो तुमको बता दूं
आ गया फिर लौट कर मैं , प्यार का संसार लिखने ।।
मनोज नौटियाल 28 - 05 - 2016
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