पूछ रही हम दोनों से आज हमारी ही परछाई
दो हमराज आज दो पल में कैसे बन बैठे हरजाई ।।
तुम्हे एक टक देख सकूँ मैं , ऐसा ये परिवेश नहीं है
झुक जाते थे जिसके दर पे , ये ऐसा दरवेश नहीं है
जहाँ प्रेम का घर होता था , ये वो अपना देश नहीं है
जिसे देख स्तंभित हो जाता था , वो गण वेश नहीं है ।।
आज जानकर भी हम दोनों छुपा रहे अपनी सच्चाई
दो हमराज आज दो पल में कैसे बन बैठे हरजाई ।।
जहाँ कभी दोनों ने मिलकर अपनी सौगंधे की पूरी
आज डराने को व्याकुल हैं बीतराग के प्रेत अघोरी
पावन मंदिर के पीपल पर बाँधी संकल्पों की डोरी
आज खंडहर बनी ताकती है उस देवालय की ड्योढ़ी ।।
बुरे वक्त में गिना रहे हैं हम अपनी अपनी अच्छाई
दो हमराज आज दो पल में कैसे बन बैठे हरजाई ।।
चलो बही खाते चाहत के आज जरा खोलें हम दोनों
लाभ हानि की हिस्सेदारी का अनुपात टटोलें दोनों
आज बर्गलाती भाषा में , इक दूजे को बोलें दोनों
अपने अपने अहंकार को खुद ही मिलकर तोलें दोनों
आज बोलने दो दुनिया को ये ना समझे पीड़ पराई
दो हमराज आज दो पल में कैसे बन बैठे हरजाई ।।
मनोज नौटियाल
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