आज एक नयाँ प्रयोग । प्रेम का उन्वान
ये धरा अम्बर हवाएँ ,बोलती चारों दिशाएं
हे प्रिये अतिरेक हो जाएँ , हमारी भावनाएं
नाचती उन्मुक्त होकर,आज आतुर कामनाएं
आज खुजराहो बनेगी, भाव की ये प्रतिमाएं ।।
अनगिनत मनसिज मुखर ,होने लगे हैं नृत्य करने
अब नहीं कर्ता लगा , अज्ञात सारे कृत्य करने ।।
खोजती एकांत कोई , प्रेम की संभावनाएं
आज खुजराहो बनेगी, भाव की ये प्रतिमाएं ।।
अब ह्रदय की धड़कनो पर, भी नहीं कोई नियंत्रण
दे रहा स्पर्श हमको , पास आने का निमंत्रण
अधखुले कम्पित अधर पर, छा गई हैं लालिमाएं
आज खुजराहो बनेगी, भाव की ये प्रतिमाएं ।।
तृप्ति की उद्घोषणाएं ये तुम्हारी करवटें हैं
प्रेम के उन्वान की , देती गवाही सलवटें हैं
हो गई है आज खंडित ,लाज की सब साधनाएं
आज खुजराहो बनेगी, भाव की ये प्रतिमाएं ।।
मनोज नौटियाल
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